मय-कशो जान के लाले नज़र आते हैं मुझे ख़ाली ख़ाली से पियाले नज़र आते हैं मुझे ज़ेहन इंसाँ ने तराशे हैं जो यज़्दाँ के ख़िलाफ़ सारे बे-जान हवाले नज़र आते हैं मुझे वक़्त-ए-रफ़्तार छलकते हुए ये रूप-कलस चलते फिरते से शिवाले नज़र आते हैं मुझे है हवासों पे शब-ए-हिज्र का इस दर्जा असर सुब्ह के रंग भी काले नज़र आते हैं मुझे तेरे अशआ'र भी शादाब बुतों के मानिंद नाज़-ओ-अंदाज़ के पाले नज़र आते हैं मुझे