मय-ओ-साक़ी हैं सब यकजा अहाहाहा अहाहाहा अजब आलम है मस्ती का अहाहाहा अहाहाहा बहार आई तुड़ाने फिर लगे ज़ंजीर दीवाने हुआ शोर-ए-जुनूँ बरपा अहाहाहा अहाहाहा जिन आँखों ने न देखा था कभी यक अश्क का क़तरा चले हैं उस से अब दरिया अहाहाहा अहाहाहा मिरे घर इस हवा में साक़ी-ओ-मुत्रिब अगर होते तो कैसे मय-कशी करता अहाहाहा अहाहाहा किया 'बेदार' से आशिक़ को तू ने क़त्ल ऐ ज़ालिम कोई करता है काम ऐसा अहाहाहा अहाहाहा