तेरे वादों का ए'तिबार किसे गो कि हो ताब-ए-इंतिज़ार किसे इक नज़र भी है दीद-ए-मुफ़्त-नज़र इतनी फ़ुर्सत भी ऐ शरार किसे जूँ नगीं याँ सिवाए रू-सियही दहर करता है नाम-दार किसे दिल तो डूबा अब और देखें डुबाएँ ये मिरी चश्म-ए-अश्क-बार किसे तेरे वादों को मैं समझता हूँ धोका देता है मेरे यार किसे तू बग़ल से गया था दिल भी गया और ले बैठूँ दरकिनार किसे मैं तो क्या और भी सिवाए सबा तेरे कूचे तलक गुज़ार किसे देखता ही नहीं वो मस्त-ए-नाज़ और दिखलाऊँ हाल-ए-ज़ार किसे ख़ूब देखे 'असर' ने क़ौल-ओ-क़रार अब तिरे क़ौल पर क़रार किसे