रात गुज़रे है मुझे नज़्अ' में रोते रोते आँखें फिर जाएँगी अब सुब्ह के होते होते खोल कर आँख उड़ा दीद जहाँ का ग़ाफ़िल ख़्वाब हो जाएगा फिर जागना सोते सोते दाग़ उगते रहे दिल में मिरी नौमीदी से हारा में तुख़्म तमन्ना को भी बूते बूते जी चला था कि तिरे होंट मुझे याद आए ला'ल पाएँ हैं मैं इस जी ही के खोते खोते जम गया ख़ूँ कफ़-ए-क़ातिल पे तरह 'मीर' ज़ि-बस उन ने रो रो दिया कल हाथ को धोते धोते