मेहर जब तक हल्क़ा-ए-आफ़ाक़ में आया न था तीरगी ही मो'तबर होगी कभी सोचा न था ज़िंदगी के शहर में मुर्दा-दिली तक़दीर थी जो भी जान-ए-बज़्म था उस का कोई चेहरा न था प्यास को आने लगा था हुक्मरानी का हुनर अब्र का टुकड़ा किसी को याद भी आता न था इस से पहले ऐसी शिद्दत तो अंधेरे में न थी रौशनी का हर्फ़ होंटों से जुदा होता न था दिन थे लेकिन इंक़लाब आने से पहले के थे दिन फूल अभी महका न था पत्थर अभी बोला न था दुख के सूरज को सवा नेज़े पे 'बेदी' देख कर ख़्वाब सुख के देखता था आदमी अंधा न था