मेहरबानी भी है इताब भी है कुछ तसल्ली कुछ इज़्तिराब भी है है तो अग़्यार से ख़िताब मगर मेरी हर बात का जवाब भी है वाँ बराबर है ख़ल्वत-ओ-जल्वत उस की बे-पर्दगी हिजाब भी है हो क़नाअत तो है जहाँ दरिया हिर्स ग़ालिब हो तो सराब भी है वो तख़बतुर कहाँ तपाक कहाँ गर्म-ओ-रौशन तो आफ़्ताब भी है