मेहंदी पाँव में क्या लगाना था ये न आने का इक बहाना था ज़िक्र-ए-गुल आप की कहानी थी हाल-ए-बुलबुल मिरा फ़साना था मर के जन्नत में मेरा जी न लगा उस का कूचा बहुत सुहाना था जिस तरफ़ मैं गया यही देखा मेरा क़िस्सा मिरा फ़साना था नज़्अ' के वक़्त मेरे पास उन्हें दो घड़ी के लिए तो आना था फिर कर आया गया न एक से भी कूचा-ए-यार क्या सुहाना था आदमी भेज कर बुलाते थे कहिए वो कौन सा ज़माना था ख़ुद मैं आया तो आप कहते हैं बे-बुलाए तुम्हें न आना था शाम तक तो 'हक़ीर' अच्छे थे मौत काहे को थी बहाना था