मेहरबानों की मेहरबानी से लोग मिलते हैं ख़ुश-बयानी से जब से डूबी है सोहनी दरिया में मुझ को लगती है आग पानी से ज़लज़लों से मकान गिरते हैं घर उजड़ते हैं बद-गुमानी से कोई समझाए जाने वाले को दिल बहलता नहीं निशानी से आप नाज़ाँ हैं जिस जवानी पर हम भी गुज़रे हैं उस जवानी से क़िस्सा-गो से यही गुज़ारिश है दूर राजा करे न रानी से ज़िंदगानी से एक शिकवा है एक शिकवा है ज़िंदगानी से क्यों न होगा शिगाफ़ पत्थर में अश्क बहता रहा रवानी से 'फ़ैज़' दुनिया सँभाल अब अपनी मुझ को बे-दख़्ल कर कहानी से