में महफ़िल-ए-हयात में हैरान सा रहा हर एक की निगाह में अंजान सा रहा कुछ कर सका न शाम तलक राह-ए-शौक़ में हर पल हर एक गाम पे बे-जान सा रहा पलकें उठा के देख सका मैं न एक बार मेरा ख़िरद जुनूँ का निगहबान सा रहा राह-ए-हयात में न मिली एक पल ख़ुशी ग़म का ये बोझ दोश पे सामान सा रहा बू-ए-गुल-ओ-समन की तरह इस जहान में 'आहन' तमाम उम्र परेशान सा रहा