मेरा असबाब-ए-सफ़र धूप हुआ करती थी मैं जिधर जाऊँ उधर धूप हुआ करती थी उस महल्ले में भटकता था मिरे मन का सफ़ीर जिस में उड़ती सी ख़बर धूप हुआ करती थी छाँव के बा'द की ख़्वाहिश भी हुआ करती थी छाँव धूप के बा'द का डर धूप हुआ करती थी क्या हुए अब वो मोहब्बत की शुरूआ'त के रोज़ जब यहाँ आठ-पहर धूप हुआ करती थी अब तिरे रूप की किरनों से है रौशन ये हयात तुझ से पहले भी मगर धूप हुआ करती थी छाँव में आऊँ तो सब लोग चले आते थे मेरी तन्हाई का घर धूप हुआ करती थी