मिरा है दो-जहाँ में रहनुमा दिल पयम्बर दिल है का'बा दिल ख़ुदा दिल मिला जैसा मुझे इक बेवफ़ा दिल किसी को भी न दे ऐसा ख़ुदा दिल ये आईना कुदूरत से बरी है सफ़ाई में है मेरा हक़-नुमा दिल यहाँ पीरी नहीं चलती ख़िज़र की तरीक़-ए-इश्क़ में है रहनुमा दिल बिगड़ता है वो ज़ालिम मुझ से जितना मिरा आता है और उस पर सिवा दिल जहाँ में साहिब-ए-क़िस्मत वही है मुक़द्दर से हुआ जिस को अता दिल है हर दम मुज़्तरिब हर लहज़ा बेताब मुझे भी क्या मिला सब से जुदा दिल जो पूछे दुश्मन-ए-जाँ है तिरा कौन कहूँ मैं सैकड़ों में बरमला दिल निकलने की कहीं जब रह न पाई तो ख़ूँ हो हो के आँखों से बहा दिल बला के दाम में जा कर फँसा है न तेरी ज़ुल्फ़ से होगा रिहा दिल मिरे पहलू में आख़िर क्यों है बेताब दिखाता फिर रहा हूँ जा-ब-जा दिल तमन्ना दिल है अपना दिल है मतलब हमारी आरज़ू दिल मुद्दआ' दिल तिरे ख़ंजर ने बख़्शी उम्र-ए-जावेद दुआ-गो हूँ मैं क़ातिल लब से ता-दिल अभी छेड़ो न मुझ को ऐ नकीरैन ठिकाने पर तो आने दो ज़रा दिल ज़माने की ज़बाँ पर दिल ही दिल है बताए तो कोई है चीज़ क्या दिल हमारी 'सब्र' दिल से चल रही है यही जी में है अब तो हम हैं या दिल