मेरा ख़याल उन की तमन्ना कहें जिसे उन का गुमान रंजिश-ए-बे-जा कहें जिसे मैं आरज़ू-ए-मौत किस उम्मीद पर करूँ वो जानता है रश्क-ए-मसीहा कहें जिसे सच पूछिए तो नाम इसी का है ज़िंदगी हम इस्तिलाह-ए-इश्क़ में मरना कहें जिसे उफ़्तादगी में दिल भी शरीक-ए-अलम नहीं दुनिया में आह कौन है अपना कहें जिसे सर फोड़ना जुनूँ में दलील-ए-कमाल है फ़र्ज़ानगी-ए-इश्क़ है सौदा कहें जिसे दीबाचा-ए-फ़ना है हक़ीक़त में ज़िंदगी या'नी सुकून-ए-होश है मरना कहें जिसे मेरे ख़ुलूस पर भी हज़ारों शोकूक हैं 'तालिब' ये है नसीब का लिक्खा कहें जिसे