मेरा मस्लक है मोहब्बत दोस्ती शेवा मिरा मेरी मंज़िल भी यही है और यही रस्ता मिरा क्यूँ किसी से कुछ बयाँ करता भी मैं रूदाद-ए-ग़म हाल-ए-दिल का आइना भी मेरा है चेहरा मिरा अपनी वज़्अ'-दारी ने होने दिया रुस्वा नहीं गो रहा महरूमियों से उम्र-भर रिश्ता मिरा आबला-पाई से कब सहरा-नवर्दी रुक सकी इक रफ़ीक़-ए-राह की सूरत है ज़ख़्म-ए-पा मिरा दोस्तों को हो मुबारक भी फ़ज़ा-ए-गुलिस्ताँ राह कब से देखता है दामन-ए-सहरा मिरा वज़्अ'-दारी दोस्तों से हो सकी इतनी नहीं दुश्मनों में रात-दिन तो होता है चर्चा मिरा आप ही ने तो मोहब्बत से कहा था एक दिन आशिक़-ए-जाँ-बाज़ है 'ख़ुशतर' फ़क़त तन्हा मिरा