मेरा सर कब किसी दरबार में ख़म होता है कूचा-ए-यार में लेकिन ये क़दम होता है पुर्सिश-ए-हाल भी इतनी कि मैं कुछ कह न सकूँ इस तकल्लुफ़ से करम हो तो सितम होता है शैख़ मय-ख़ाने में करता है इरम की बातें इसी मय-ख़ाने का इक गोशा इरम होता है एक दिल है कि उजड़ जाए तो बस्ता ही नहीं एक बुत-ख़ाना है उजड़े तो हरम होता है राहबर राह-नवर्दी से परेशाँ है 'कमाल' जिस तरफ़ जाए मिरा नक़्श-ए-क़दम होता है