मेरा साया भी अगर बाब-ए-तरब तक आया कहना बदनाम-ए-ज़माना था नसब तक आया धुंद ही धुंद थी हर सम्त फिर इक सम्त से मैं सामने दिखता हुआ अपने अक़ब तक आया बद-नसीबी में यही बात बुरी है यही बात कोई भी ज़हर नहीं मेरी तलब तक आया हाथ आई हुई इक मौज-ए-फ़ना फैल गई जब कोई झोंका तिरे जान-ब-लब तक आया शर्म से भीगी हुई पोरों में अटका हुआ झूट कभी पेशानी तक आया कभी लब तक आया