मेरे अंदर का ग़ुरूर अंदर गुज़रता रह गया सर से पाँव तक उतरना था उतरता रह गया बारिशों ने फिर वही ज़हमत उठाई देर से एक रेगिस्तान है कि फिर भी प्यासा रह गया ज़िंदगी भर आँख से आँसू नदामत के गिरे और मेरे दिल का सुफ़्फ़ा यूँ ही सादा रह गया पहली बारिश ही में तक़्वा के निशाँ सब धुल गए सर में इक टूटा हुआ मज़लूम सज्दा रह गया कैसे होगा अब ख़ुदाई बंदगी का फ़ैसला शहर के सारे ख़ुदा में एक बंदा रह गया जल्द मंज़िल तक पहुँचने का जुनूँ उस को रहा ज़िंदगी भर इस लिए रस्ता बदलता रह गया