मेरे चेहरे की स्याही का पता दे कोई आइने मेरे मुक़ाबिल से हटा दे कोई दश्त-दर-दश्त यहाँ फैल रहे हैं साए शहर-ए-गुल-रेज़ से फिर मुझ को सदा दे कोई आलम-ए-यास में ख़्वाबों में उतरना तेरा जैसे बीमार को जीने की दुआ दे कोई मर्ग-ए-अम्बोह में अब जश्न का पहलू भी नहीं आसमाँ आख़िरी मंज़र तो दिखा दे कोई