मेरे होंटों को छुआ चाहती है ख़ामुशी! तू भी ये क्या चाहती है मेरे कमरे में नहीं है जो कहीं अब वो खिड़की भी खुला चाहती है ज़िंदगी! गर न उधेड़ेगी मुझे किस लिए मेरा सिरा चाहती है सारे हंगामे हैं पर्दे पर अब फ़िल्म भी ख़त्म हुआ चाहती है कब से बैठी है उदासी पे मेरी याद की तितली उड़ा चाहती है नूर मिट्टी में ही होगा उन की जिन चराग़ों को हवा चाहती है मेरे अंदर है उम्मस इस दर्जा मुझ में बारिश सी हुआ चाहती है भोर आई है इरेज़र की तरह शब की तहरीर मिटा चाहती है आसमाँ में हैं सराबों की सी जिन घटाओं को हवा चाहती है चाँद का फूल है खिलने को फिर शाम अब शब को छुआ चाहती है फिर न लौटेगी मिरी आँखों में नींद रंगों सी उड़ा चाहती है