मेरे इल्ज़ाम सब ज़माने पर वो नहीं है मिरे निशाने पर पत्थरों से भी इश्क़ होता है मैं ने जाना ये तुझ को पाने पर एक बादल बहुत ही रोया था एक दरिया के सूख जाने पर मुझ को आसान था रुला देना दिक्कतें आएँगी हँसाने पर वक़्त की क़ैद में रहा इतना पंछी उड़ता नहीं उड़ाने पर किस तरह का हिसाब है 'आकिब' इश्क़ बढ़ता है क्यों घटाने पर