मेरे जज़्बों को रवानी से निकल जाना है कह रहे हैं हमें पानी से निकल जाना है बात करते हुए लहजा ये बताता है तिरा हम को इक रोज़ कहानी से निकल जाना है इस जनम-दिन ये उदासी मुझे खा जाएगी दो बरस बाद जवानी से निकल जाना है तेरे हर तोहफ़े को कमरे से जुदा कर के अब तेरी हर एक निशानी से निकल जाना है आख़िरी अश्क थे तेरे लिए मेरे आँसू अब ये बहते हुए पानी से निकल जाना है ये अजब ज़िद है अजब तौर की फ़रमाइश है रात को रात की रानी से निकल जाना है