मेरे क़दमों पर निगूँ मेरा ही सर है भी तो क्या मेरे साए की ये साज़िश कारगर है भी तो क्या तेरी ख़ुश-फ़हमी के इस आईना-ए-सद-रंग में अक्स चेहरे से सिवा जाज़िब-नज़र है भी तो क्या अपने मरकज़ से जुदा हो कर अगर ये फ़िक्र-ए-नौ दायरा-दर-दायरा गर्म-ए-सफ़र है भी तो क्या ज़हर की कोहना रिवायत ही का डर डस जाएगा जिस्म से लिपटी ये नागिन बे-ज़रर है भी तो क्या मेहरबाँ क़तरों की बारिश अब्र-ए-आइंदा में है फ़स्ल-ए-इम्काँ अब के मौसम बे-समर है भी तो क्या सैर-ए-ला-सम्ती से भी ला-हासिली का लुत्फ़ ले रेग-ए-सहरा बे-सदा ओ बे-समर है भी तो क्या