मेरे ख़त का जवाब आया था ख़त न लिक्खा करो ये लिक्खा था मैं ज़बाँ से तो कह नहीं सकता जो नज़ारा नज़र ने देखा था वक़्त-ए-मुश्किल वो साथ छोड़ गया जिस पे मुझ को बड़ा भरोसा था अपने बेगाने होते जाते थे बस इसी बात का अचम्भा था क़त्ल करता था बे-गुनाहों का सब की नज़रों में जो फ़रिश्ता था जिस में 'राना' हमारी उम्र कटी वो ज़माना भी क्या ज़माना था