मेरे ख़याल से दामन छुड़ा लिया है तो क्या कहा ये किस ने कि भूले से भी सलाम न ले भरी बहार में फूलों के चाक-दामन हैं किसे सज़ा मिले गुल तो किसी का नाम न ले बहार कर गई ख़ाली चमन के आँचल को ख़िज़ाँ का कर्ब भी देखो कि इंतिक़ाम न ले ये चाँदनी है किसी की निगाह का परतव नज़र से पी ले तो हाथों में कोई जाम न ले अकेली रह में न दो-गाम भी चला जाए जो शाम-ए-ग़म तिरी यादों की उँगली थाम न ले ये कौन रूह पे चरके लगा गया 'हुस्ना' क़सम वफ़ा की तू उस बेवफ़ा का नाम न ले