मेरे लफ़्ज़ों पर न जा आराइश-ए-गुफ़्तार देख रौशनी क्या देखता है शो'ला-ए-अफ़्कार देख बे-सबब है ख़ार-ओ-ख़स पर ही नज़र रखने की बात दावत-ए-नज़्ज़ारगी देता हुआ गुलज़ार देख अब तो इस घर के लिए ताज़ा हवा के साथ साथ रौशनी भी लाएगी गिरती हुई दीवार देख इस खंडर पर इक नई बस्ती बसाई जाएगी देख मत आसार का मंज़र पस-ए-आसार देख हर घड़ी की सादगी से काम चल सकता नहीं मस्लहत से डाल देते हैं कभी तलवार देख