मिरे लहू से है इक रंग-ए-नौ बहार-ए-ग़ज़ल ग़रीब-ए-शहर हूँ लेकिन हूँ शहर-यार-ए-ग़ज़ल जो छू के निकली है मौज-ए-नसीम-ए-इश्क़ कभी महक महक उठे गेसू-ए-ताबदार-ए-ग़ज़ल ख़ुलूस-ए-इश्क़-ओ-ख़ुलूस-ए-हयात की तस्वीर हर एक शेर ग़ज़ल है कि शाहकार-ए-ग़ज़ल हमारे ग़म में ग़म-ए-इश्क़-ए-काएनात भी है हमारे अश्कों से शादाब है बहार-ए-ग़ज़ल हमारे ज़ौक़-ए-जुनूँ से है काएनात हसीं हम अहल-ए-इश्क़ से है रौनक़-ए-दयार-ए-ग़ज़ल वो काएनात का दुख-सुख ग़ज़ल के पर्दे में हुआ न 'मीर' सा फिर कोई शहर-यार-ए-ग़ज़ल