मेरे मुग़न्नी तुझे क्या हो गया नग़्मा भी अंदोह-फ़ज़ा हो गया तू ने मिरे दर्द का दरमाँ किया और भी कुछ दर्द सिवा हो गया निकहत-ए-गुल से भी लगी दिल पे चोट ग़ुंचा जहाँ चाक-क़बा हो गया हाए वो माथा जो हुआ दाग़-दार हैफ़ वो सज्दा जो अदा हो गया एक ग़ज़ल हम ने पढ़ी थी कि 'शोर' हश्र सर-ए-बज़्म बपा हो गया