मेरे रोने पर जो रोया आदमी फ़हमीदा है नासेह-ए-आक़िल पुराना गुर्ग-ए-बाराँ-दीदा है मैं भी तो देखूँ निकलता है ये तिनका किस तरह चारागर की आँख में मेरा तन-ए-काहीदा है तू ने रक्खा है रक़ीब-ए-तुर्श-रू के दिल पे हाथ आज क्यों फीका तिरा दस्त-ए-हिना-मालीदा है ख़ाक में उस ने मिलाया मुझ को या मैं ने उसे आज मैं हूँ और ये मेरा दिल-ए-तफ़्तीदा है ज़ह्र खा कर मिल गए हैं ख़ाक में आशिक़ बहुत उँगलियाँ हैं देख तो या सब्ज़ा-ए-रोईदा है ख़ूब आता है लगा लेना निगाह-ए-यार को एक से अन-बन हुई तो दूसरा गिरवीदा है बहर-ए-नज़्ज़ारा चला है कूचा-ए-क़ातिल में 'दाग़' किस बला का है कलेजा किस ग़ज़ब का दीदा है