मेरी आँखों को मिरी शक्ल दिखा दे कोई काश मुझ को मिरा एहसास दिला दे कोई ग़रज़ इस से नहीं वो कौन है किस भेस में है मैं कहाँ पर हूँ मुझे मेरा पता दे कोई ढूँढता फिरता हूँ यूँ अपने ही क़दमों के निशाँ जैसे मुझ को मिरी नज़रों से छुपा दे कोई दिल की तख़्ती सर-ए-बाज़ार लिए फिरता हूँ काश इस पर तिरी तस्वीर बना दे कोई यूँ तुझे देख के चौंक उठती हैं सोई यादें जैसे सन्नाटे में आवाज़ लगा दे कोई दूसरी सम्त हैं ख़ुशबू के उफ़ुक़ की सुब्हें रंग के कोहर की दीवार गिरा दे कोई साँस रोके हुए बैठे हैं मकानों में मकीं जाने कब और किसे आ के सदा दे कोई