मेरी अफ़्सुर्दगी से लुत्फ़ उठाने वाले कितने ज़ालिम हैं ये सब लोग ज़माने वाले लोग हँसते हैं उदासी में तड़पता हूँ जब एक तो दर्द है ऊपर से सताने वाले प्यार अपनी जगह पर एक शिकायत है मुझे तुम ने आने में बहुत देर की आने वाले मैं कभी पास चला जाता था रोने के लिए और कभी ज़ेहन में आ जाते रुलाने वाले इक तरफ़ रंज बुलाता है मुसलसल मुझ को दूसरी और मुझे रंज बुलाने वाले मरकज़-ए-कर्ब का 'अहमद' जो छिड़े ज़िक्र कहीं जाने क्यों तेरा बताते हैं बताने वाले