मेरी तारीफ़ करे या मुझे बद-नाम करे जिस ने जो बात भी करनी है सर-ए-आम करे ज़ख़्म पर वक़्त का मरहम तो लगा देती है और क्या इस के सिवा गर्दिश-ए-अय्याम करे मोहतसिब से मैं अकेला ही निमट सकता हूँ जिस ने जो जुर्म किया है वो मिरे नाम करे वो मिरी सोच से ख़ाइफ़ है तो उस से कहना मुझ में उड़ते हुए ताइर को तह-ए-दाम करे कौन आएगा पए-पुर्सिश-ए-अहवाल यहाँ किस की ख़ातिर कोई तजईन-ए-दर-ओ-बाम करे मुझ को भी हो मिरी औक़ात का कुछ अंदाज़ा कोई तो सूरत-ए-यूसुफ़ मुझे नीलाम करे