मेरी वहशत का जो अफ़्साना बनाया होता सुनने वालों को भी दीवाना बनाया होता उन के लाने की न सूझी तुझे क़ासिद तदबीर झूट सच कोई तो अफ़्साना बनाया होता देखते तुम कि सँवर जाते न गेसू कैसे मेरी पलकों का अगर शाना बनाया होता मर के भी रूह न पीने को तरसती साक़ी मेरी मिट्टी से जो पैमाना बनाया होता तुम ने ज़ुल्फ़ों को बना कर हमें दीवाना किया क्या बिगड़ता था तुम्हारा न बनाया होता दिल जो वाइज़ का बनाया था इलाही पत्थर काश संग-ए-दर-ए-मय-ख़ाना बनाया होता दिल-ए-वहशी जो छुटा मुझ से बहुत ख़ूब हुआ वर्ना अब तक मुझे दीवाना बनाया होता वुसअत-ए-दिल जो कोई पीर-ए-मुग़ाँ दिखलाया एक इक जाम को मय-ख़ाना बनाया होता मुँह से आँचल जो हटाता वो सर-ए-बज़्म 'जलील' ब-ख़ुदा शम्अ को परवाना बनाया होता