मेरी वहशत का तिरे शहर में चर्चा होगा अब मुझे देख के शायद तुझे धोका होगा साफ़ रस्ता है चले आओ सू-ए-दीदा-ओ-दिल अक़्ल की राह से आओगे तो फेरा होगा कौन समझेगा भला हुस्न-ए-गुरेज़ाँ की अदा मेरे ईसा ने मिरा हाल न पूछा होगा वज्ह-ए-बे-रंगी-ए-हर-शाम-ओ-सहर क्या होगी मैं ने शायद तुझे हर रंग में देखा होगा अब कहीं तू ही डुबोवे हमें ऐ मौज-ए-सराब वर्ना फिर शिकवा-ए-पायाबी-ए-दरिया होगा कोई तदबीर बता ऐ दिल-ए-आज़ार-पसंद उस को जी-जाँ से भुलाने में तो अर्सा होगा हुस्न की ख़ल्वत-ए-सादा भी है सद-बज़्म-तराज़ इश्क़ महफ़िल में भी होगा तो अकेला होगा झुटपुटा छाया है कौन आया है दरवाज़े पर देखना 'शाज़' कोई सुब्ह का भूला होगा