मिरी ज़बान खुली भी तो क्या सज़ा देगा बहुत हुआ तो मुझे बज़्म से उठा देगा खड़ा हुआ हूँ मिसाल-ए-गियाह तूफ़ाँ में कोई दरख़्त नहीं हूँ कि वो गिरा देगा जहाँ से ना'रा-ए-मस्ताँ वहाँ से शहनाई दबा ये शोर तो नग़्मा हमें सुला देगा बला से राह को रोके खड़ा है इक मजमा कोई तो भीड़ से बचने का रास्ता देगा किसे यक़ीन रहा है कि हाकिम-ए-दौराँ मिरी वफ़ा का मिरे दौर को सिला देगा बहुत से बाग़ी-ओ-सरकश हैं क़ैदियों में 'हसन' कोई तो जान पे खेलेगा सर कटा देगा