मिज़ा पे अश्क-ए-अलम झिलमिलाए आख़िर-ए-शब बिछड़ने वाले बहुत याद आए आख़िर-ए-शब वो जिन के क़ुर्ब से ढारस थी मेरे दिल को बहुत कोई कहीं से उन्हें ढूँड लाए आख़िर-ए-शब ये शोर-ए-बाद-ए-ज़मिस्ताँ ये रास्ता सुनसान डरा रहे है दरख़्तों के साए आख़िर-ए-शब हवा में दर्द की शिद्दत से ज़मज़मा-पैरा सुनेगा कौन ये मेरी सदाए-आख़िर-शब रवाना होने को है कारवाँ सितारों का फिर उस के बा'द कहाँ नक़्श-ए-पा-ए-आख़िर-ए-शब किधर चली है निगार-ए-फ़लक किसे मा'लूम ये तश्त-ए-माह-ओ-सितारा उठाए आख़िर-ए-शब वो तेरी याद के मेहमान हो गए रुख़्सत उजड़ गई मिरे दिल की सराए आख़िर-ए-शब फिर उस के बा'द वही धूप है मशक़्क़त की ज़रा सी देर को है ख़्वाबनाए आख़िर-ए-शब नसीब हो सफ़-आइंदगाँ को ताज़ा सहर मिरे लबों पे यही है दुआ-ए-आख़िर-ए-शब वो सो गए हैं जिन्हें जागने की आदत थी किसे पुकार रही है हवा-ए-आख़िर-ए-शब 'फ़रासत' अब हुई महफ़िल तमाम घर को चलो सरक रही है फ़लक पर रिदा-ए-आख़िर-ए-शब