मिज़्गाँ पे आज यास के मोती बिखर गए ज़ुल्मत बढ़ी जो रात की तारे निखर गए कैसी ज़िया है ये जो मुनव्वर हैं बाम-ओ-दर सू-ए-फ़लक ये किस की फ़ुग़ाँ के शरर गए शिकवे हैं आसमाँ से ज़मीं से शिकायतें इल्ज़ाम उन के जौर के किस किस के सर गए महफ़िल में आई किस की सदा-ए-शिकस्त-ए-दिल साक़ी के हाथ रुक गए साग़र ठहर गए सीना-फ़िगार फूलों से ख़ुशबू निकल पड़ी शबनम के आँसुओं से गुलिस्ताँ निखर गए उलझी थी जिन में एक ज़माने से ज़िंदगी क्यूँ ऐ ग़म-ए-हयात वो गेसू सँवर गए