मिल मिल के दोस्तों ने वो दी है दग़ा मुझे अब ख़ुद पे भी नहीं है गुमान-ए-वफ़ा मुझे उफ़ इब्तिदा-ए-शौक़ की मा'सूम जुस्तुजू हर फूल था चमन में तिरा नक़्श-ए-पा मुझे ऐ खिंचने वाले देख मिरी बे-पनाहीयाँ आती है दुश्मनों से भी बू-ए-वफ़ा मुझे दुनिया तुम्हें अज़ीज़ है मेरे सिवा मगर आलम है ना-पसंद तुम्हारे सिवा मुझे करती नहीं उबूर तुम्हें मेरी जुस्तुजू क्या कर दिया है तुम ने ये क्या हो गया मुझे वज़अन भी हँस पड़ा हूँ तो फिर दिल से मुद्दतों आई कराहने की सदा पर सदा मुझे फिर बात बात में है लचक इल्तिफ़ात की क्या फिर दिखाओगे कोई ख़्वाब-ए-वफ़ा मुझे ये है फ़ुग़ाँ का ज़ोर तो फिर वो चुका क़फ़स कर देगी मेरी शो'ला-नवाई रिहा मुझे कोताही-ए-नज़र से अहाता न हो सका मिलने को यूँ मिला है बुतों में ख़ुदा मुझे मेरी वफ़ा पे आप ही चीं-बर-जबीं नहीं मैं ख़ुद भी सोचता हूँ ये क्या हो गया मुझे जिस मुद्दआ-ए-शौक़ की दरयाफ़्त हैं हुज़ूर मायूस कर रहा है वही मुद्दआ' मुझे इक ज़ीक़ इक अज़ाब इक अंदोह इक तड़प तुम ने ये दिल के नाम से क्या दे दिया मुझे उन को गँवा के हाल रहा है ये मुद्दतों आया ख़याल भी तो बड़ा ग़म हुआ मुझे इफ़्लास के शबाब-ए-मुक़द्दस में बारहा आया है पूछने मिरे घर पर ख़ुदा मुझे 'एहसान' अपने वक़्त पे मौत आएगी मगर जीने का मशवरा नहीं देती फ़ज़ा मुझे