मिला एक गूना सुकूँ हमें जो तुम्हारे हिज्र में रो लिए ज़रा बार-ए-क़ल्ब सुबुक हुआ कई दाग़ दर्द के धो लिए हो नशात-ए-दिल कि मलाल-ए-दिल हमें पेश करना जमाल-ए-दिल कभी हँस के फूल खिला लिए कभी रोके मोती पिरो लिए है रहीन ग़म मिरी जुस्तुजू ये है कैसा गुलशन-ए-रंग-ओ-बू यहाँ कुछ गुलो की तलाश में कई ख़ार मैं ने चुभो लिए कई उम्र दौड़ते-भागते रहे यूँ तो शब को भी जागते कभी थक गए तो ठहर गए कभी नींद आई तो सो लिए सभी लोग मस्त-ए-शुऊ'र हैं कि ख़ुदी के नश्शे में चूर हैं कोई ग़म-शनास नहीं यहाँ ग़म-ए-दिल किसी पे न खोलिए ये उन्हीं का नूर है जिस में हम चले हौसले से क़दम क़दम जो सरिश्क ग़म के बहा लिए जो दिए वफ़ा के संजो लिए