मिलन न राएगाँ जाए समय से पार मिलें कि एक दूसरे का बन के हम क़रार मिलें अजीब अपना मुक़द्दर अजीब महरूमी कि तेरे होते हुए तेरे इंतिज़ार मिलें मैं नक़्द-ए-जान को भी शौक़ से रखूँ गिरवी तुम्हारे क़ुर्ब के लम्हे अगर उधार मिलें बहार फूल धनक चाँदनी घटा मौसम तुम्हारी एक हँसी पर सभी निसार मिलें जो खोल खोल के देखूँ ये ज़ख़्म-हा-ए-जिगर अजब नहीं कि हमें दोस्तों के वार मिलें ख़ुशा नसीब कि मंज़िल क़रीब-तर होगी धमाल डालो जो रस्ते में तुम को ख़ार मिलें हदों ने छीन लिया है हमारा क़ुर्ब सनम सो अपने अपने बदन को ज़रा उतार मिलें ये इमतियाज़-ए-मन-ओ-तू मिटेगा कब आख़िर म्यान-ए-तालिब-ओ-मतलूब भी हिसार मिलें समझ गया था तुझे देखते ही जान-ए-'शजर' हज़ार बार लुटेंगे जो एक बार मिलें