मिले बिना ही बिछड़ने के डर से लौट आए अजीब ख़ौफ़ में हम उस के दर से लौट आए न ऐसे रोइए नाकामी-ए-मोहब्बत पर ख़ुशी मनाइए ज़िंदा भँवर से लौट आए ये सोचते हुए बैठे हैं राह में रुक कर उधर तो गए ही नहीं थे जिधर से लौट आए लब उस के सामने थे और हम ने चूमा नहीं समझ लो पाँव उठे और दर से लौट आए अभी तो वक़्त है सूरज के डूबने में तो फिर ये क्या हुआ कि परिंदे सफ़र से लौट आए किसी भी तरह ये दुनिया न छोड़ पाए हम कि जब भी निकले तिरी रहगुज़र से लौट आए फिर उस ने देखा कोई तारा टूटते इक रात फिर एक रोज़ मुसाफ़िर सफ़र से लौट आए लगेंगी और भी तरकीब उस को लाने में कोई ज़रूरी है समझाने भर से लौट आए ये किस की धुन थी जो दीवार-ओ-दर न पहचाना ये किस ख़याल में अपने ही घर से लौट आए मिरे गुज़रने की अफ़्वाह ही उड़ा दे कोई किसे ख़बर कि वो झूटी ख़बर से लौट आए