माइल जो आज-कल निगह-ए-नीम-बाज़ है वो दिल टटोलते हैं कि कितना गुदाज़ है तारीकियों में वक़्त की रफ़्तार खो गई ये शाम-ए-ग़म है या तिरी ज़ुल्फ़-ए-दराज़ है तोड़े हज़ार जाम शराबों में डूब कर मिलता नहीं जो इन की निगाहों में राज़ है अब वो सितम करें कि करम हम को क्या ग़रज़ दिल उन को दे के इश्क़ बहुत बे-नियाज़ है तुम नंग जान कर इसे चाहो तो भूल जाओ हम को तो अब भी अपनी मोहब्बत पे नाज़ है