मिली फ़ुर्सत अगर रंज-ओ-बला से कहेंगे हम भी कुछ अपने ख़ुदा से ख़ुदा-ना-ख़्वास्ता तुम से गिला हो शिकायत है हमें अपनी दुआ से यूँही रब्त उन से मुझ से हर-नफ़स है हो जैसे ग़ुंचा-ओ-गुल का सबा से कोई माँगे तो क्या दुनिया से माँगे मिले क्या ख़ाक बे-बर्ग-ओ-नवा से कभी 'नाशाद' को देखा तो बोले नज़र आते हैं सूरत-आश्ना से