मिलता नहीं ख़ुद अपने क़दम का निशाँ मुझे किन मरहलों में छोड़ गया कारवाँ मुझे लम्हे का लम्स फैल चुका काएनात पर आवाज़ देने आई हैं अब दूरियाँ मुझे इक जस्त में तमाम हुईं सारी वुसअ'तें ला अब नई ज़मीन नया आसमाँ मुझे आज एक दश्त-वश्त में तन्हा शजर भी मैं हैरत से ताकते हैं सभी कारवाँ मुझे जंगल की आग फैल गई सारे सहन में ले जाए अब जुनून न जाने कहाँ मुझे सारे तिलिस्म टूट गए इश्तियाक़ के वो राह में मिले जो कभी ना-गहाँ मुझे तख़लीक़-ए-शेर जेहद-ए-मुसलसल वो ख़ाना-ज़ाद एक एक लफ़्ज़ दर पे महाज़-ए-गराँ मुझे