मिरा चेहरा भोला ओ माही पर रूप सँपोला ओ माही तिरी ताल-से-ताल मिला बैठी मिरा अंग अंग डोला ओ माही कोई राख पतंगों वाली हो जले हुस्न का शो'ला ओ माही मुझे भेज ना अपनी बस्ती का वही उड़न-खटोला ओ माही तिरी सुंदरता पे हैराँ हूँ मुझे दर्पन बोला ओ माही मैं ने बंद किवाड़ भी खोल दिए मैं ने मन भी खोला ओ माही मिरे नैन नैन सब दासी से मिरा जोगी-चोला ओ माही तिरा लम्स लहू में दौड़ा है तू ने ज़हर सा घोला ओ माही तिरी प्रीत में सुध-बुध खो बैठी तिरे इश्क़ ने रौला ओ माही मिरे रूप-सरूप को पूजता है तू है सांवल ढोला ओ माही मुझे प्रेम के अक्षर भूल गए कोई पंद्रह सोला ओ माही मिरा हार-सिंघार भी बे-मतलब तिरा दिल बे-मोला ओ माही मुझे गुर व्योपार के सिखला दे ज़रा माशा-तोला ओ माही