मिरा ही पुर-सुकूँ चेहरा बहुत था मैं अपने आप में बिखरा बहुत था बहुत थी तिश्नगी दरिया बहुत था सराबों से ढका सहरा बहुत था सलामत था वहाँ भी मेरा दामाँ बहारों का जहाँ चर्चा बहुत था उन्हें ठहरे समुंदर ने डुबोया जिन्हें तूफ़ाँ का अंदाज़ा बहुत था उड़ाता ख़ाक क्या मैं दश्त ओ दर की मिरे अंदर मिरा सहरा बहुत था ज़मीं क़दमों तले नीची बहुत थी सरों पर आसमाँ ऊँचा बहुत था