मिरा ख़ुलूस-ए-मोहब्बत भी कामराँ न हुआ वो ज़ुल्म ढाता रहा मुझ पे मेहरबाँ न हुआ जबीन-ए-इश्क़ झुकी है न झुक सकेगी कभी बरा-ए-सज्दा अगर तेरा आस्ताँ न हुआ है बात क्या जो अभी तक खिले न लाला-ओ-गुल ख़िज़ाँ के बा'द भी शादाब गुलिस्ताँ न हुआ तिरी हँसी पे लुटा देते चाँद तारों को हमारे ज़ेर-ए-असर आज आसमाँ न हुआ वो आए मेरे तसव्वुर में शुक्रिया उन का ज़हे-नसीब मिरा जज़्ब राएगाँ न हुआ किसी के इश्क़ ने वो हौसला दिया मुझ को कोई भी ग़म मिरे दिल पर कभी गराँ न हुआ वो आशियाना हो गुलशन हो या क़फ़स 'कशफ़ी' सितम ज़माने में हम पर कहाँ कहाँ न हुआ