मिरा मज़मूँ सवार-ए-तौसन-ए-तब-ए-रवाँ हो कर ज़मीन-ए-शेर पर फिरता है गोया आसमाँ हो कर खटक जाते हैं चश्म-ए-बर्क़ में मेरा निशाँ हो कर ग़ज़ब ढाते हैं या'नी चंद तिनके आशियाँ हो कर सुन ऐ जोश-ए-जुनूँ तक़लीद-ए-मजनूँ की नहीं अच्छी मबादा हम भी रह जाएँ किसी दिन दास्ताँ हो कर दमा-दम शो'बदे हम को दिखाता है कोई जल्वा कहीं शैख़-ए-हरम हो कर कहीं पीर-ए-मुग़ाँ हो कर इन आँखों से बहार-ए-बाग़-ए-दुनिया देने वालो ये आँखें रंग लाएँगी किसी दिन ख़ूँ-फ़िशाँ हो कर अजी क्या शम्अ' क्या परवाना दोनों जल बुझे आख़िर कोई आतिश-फ़िशाँ हो कर कोई आतश-बजाँ हो कर ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे ये हसीं दिल ले ही लेते हैं किसी पर मेहरबाँ हो कर किसी से सरगिराँ हो कर न पाया और कुछ भी जुज़ ख़ुदा का'बे में ऐ 'अख़्तर' बहुत नादिम हुए हम बुत-कदे से बद-गुमाँ हो कर