कश्ती भी 'मिराक़' उस की है पतवार भी सूरज आकार भी सूरज है निराकार भी सूरज झरनों में मधुर गीत उजालों की निशानी बादल की उड़ानों में छुपा सार भी सूरज बहते हुए पानी में हैं उस के ही नज़ारे है मौसम-ए-बरसात का आधार भी सूरज कुछ नाव लगाता है वही रोज़ किनारे कुछ को जो निगलता है वो मंजधार भी सूरज पत्थर से जो आई थी कभी उस की सदा थी मिट्टी के लिबासों में चमत्कार भी सूरज