मिरे दिल को ज़ुल्फ़ों की ज़ंजीर कीजो ये दीवाना अपना है तदबीर कीजो हमें क़त्ल है या है अब क़ैद ज़ालिम जो कुछ तुझ से होवे न तक़्सीर कीजो मिरे दिल ने ज़ुल्फ़ों में मस्कन किया है ये मेहमान है आए तौक़ीर कीजो जलाली तो है आह तू आसमाँ तक टुक इक इस के दिल में भी तासीर कीजो ये 'आसिफ़' तुम्हारा है ऐ बंदा-परवर उसे हर घड़ी तुम न दिल-गीर कीजो