मिरे ग़मों का मलाल मत कर तू अपना जीना मुहाल मत कर ग़म-ओ-अलम का हूँ इक समुंदर मिरा कोई तू ख़याल मत कर तू अपनी नज़रों में गिर न जाए किसी से भी अर्ज़-ए-हाल मत कर तुझे यक़ीनन मिलेगी जन्नत हराम ख़ुद पर हलाल मत कर मिलेगी रोज़ी तुझे भी 'कशफ़ी' ख़ुदा ख़ुदा कर सवाल मत कर