मिरे काँधों के बिल्कुल दरमियाँ रक्खा गया है मिरा चेहरा मिरा झूटा निशाँ रक्खा गया है मैं अब आँखों में आँखें डाल कर करती हूँ बातें मुझे सदियों से इतना बे-ज़बाँ रक्खा गया है बना कर एक पेशानी फिर उस ने हद बनाई फिर उस का नाम उस से कहकशाँ रक्खा गया है मैं यूँही तो नहीं ख़ुद से ही बाहर आ गई हूँ मिरे सर पर कोई तो आसमाँ रक्खा गया है मैं क्यूँ जज़्बात से आरी किसी शय को कहूँ दिल मिरे पहलूँ में कोई बे-अमाँ रक्खा गया